"हम जहाँ खड़े होते है लाइन वही से शुरू होती है"
पिछले पचास वर्षो से हमारी पीढ़ी जिन्हे अभिनय प्रतिमान गढ़ते देखती आ रही है, उन्हें सिनेमा के सर्वोच्च सम्मान से नवाजा जाना सचमुच सुखद है।
लगभग तीस साल पहले अमिताभ बच्चन से मुंबई मई प्रतिछा मई जब पहली बार साछात्कार के लिए मिली थी,अंदर-बहार से भरी हुई थी। इससे पहले उन्हें कई फिल्मो मई शूटिंग करते जरूर देखा था,लेकिन बिलकुल पास से देखने,बात करने और अपने पसंदीदा नायक से सवाल जवाब करने का मौका पहली बार मिला था। वे दिन थे ,जब अमिताभ बच्चन राजनीति के गलियारे से विचरकर फिल्मो मई कदम ज़माने लौट रहे थे।
पत्रकारों को हिदायत दी गयी थी की उनसे राजनीति से संबंधित कोई सवाल न करें।
दिलकश कदकाठी क अमिताभ सफ़ेद चूड़ीदार और कुर्ते मे सामने आए। अपनी गलतियों पर भी कुछ कहा ,हँसे भी,गंभीर हुए। पर ऐसा लग्ग रहा वह अपने अंतश की गहराईयो मई उतरने नहीं दे रहे। उनके जवाब बिलकुल वही थे , जो सप्ताह बाहर पहले किसी फिल्म पत्रिका मे पढ़ा था। मेरे यह कहने पर उन्होंने कहा,"मै बहुत बोरिंग आदमी हूँ। मेरे पास कहने के लिए कुछ नहीं होता है। "
बेशक बिग बी , सदी के महानायक , सुपर स्टार कहती रहती है , पर उन्हें अपने आप को एक कवी का पुत्र और एक कलाकार कहना संतोष देता है। यह संयोग ही है कि फ़िल्मी दुनिया का सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार इस वर्ष अपने पचास वर्ष पुरे कर रहा है और अमिताभ जी अपने अभिनय क सफर के। इस साल उनको यह पुरस्कार दिया जाना इस दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।
चंद दिनों पहले नयी पीढ़ी के दो नायको ने लगभग एक साथ अपने अआप को भाग्यशाली कहा। वजह थी , दोनों को पहेली बार मौका मिला था अमिताभ बच्चन क साथ काम करने का। ये उस उम्र क नौजवान है ,जिनके जनम से पहले अमिताभ बच्चन कई कीर्तिमान गढ़ चुके थे।
कार्तिक आर्यन ने एक विज्ञापन फिल्म मे अमिताभ बच्चन क साथ काम करने क बाद ट्वीट किया,उनके विश लिस्ट की एक मुराद पूरी हो गयी। आयुष्मान अमिताभ बच्चन क साथ गुलाबो-सीताबो फिल्म मे काम कर रहे है। उनका कहना है की अब जाकर उनका फिल्मो मई काम करना सार्थक हुआ है। जब तब अमिताभ युवा कलाकारों को लिखा नोट भेज कर उनका उत्साह बढ़ाते है।
नई पीढ़ी के लिए अमिताभ बच्चन "कौन बनेगा करोड़पति " के करिश्माई मेजबान है , पा, पिको और बदला जैसी फिल्मो के शानदार कालकर और टी.वी. पर आने वाली जब तब आने वाली सत्तर और अस्सी के दशक की फिल्मो क एंग्री यंगमैन। आज भी जब वह महफ़िल मे पिंक फिल्म मे कही अपनी पंक्तिया सुनते है , तो बच्चे-युवा-बूढ़े , सब भाव विभोर हो जाते है
"तो खुद की खोज मे निकल ,तो किस लिए हताश है "
"तो चल तेरे वजूद की ,समय की भी तलाश है "
पचास साल पहले , 7 नवंबर 1969 क ख्वाजा अहमद अब्बास की फिल्म "साथ हिंदुस्तानी" रिलीज हुई थी। अमिताभ बच्चन को इस शुरुआत क़े बाद लगभग 4 वर्षो तक ढेरों असफलताएं झेलनी पड़ी। 1973 मे प्रकाश महरा की फिल्म "जंजीर" कि कामयाबी ने उन्हें एक प्रतिष्ठित सितारा बना दिया। इस फिल्म और इसके बाद आने वाली फिल्मो मे वह देश क उस गरीब-गुरबा जनता का प्रतिनिधित्व करते दिखे , जो सत्ता और समाज क ठेकेदारों और अन्याय से अकेले लड़ता है और उन्हें इन्साफ दिलाता है। वह उनके बिच से उपजा, उनका अपना चहेरा था। यह नायक रातों रात सबका चाहता बन गया और उसे नाम दे दिया गया एंग्री-यंगमैन। लगभग दो दशकों तक इस नायक ने अपने नाम को सार्थक करते हुए एक से एक सफल फिल्मे दी। उनके चाहने वालो मे हर उम्र क व्यक्ति थे , बच्चो को शोले और अमर अख़बार अन्थोनी क संवाद कंठस्थ थे , तो जवानो के मुँह मे "मै पल दो पल का शायर हूँ " और "नीला आसमान सो गया " जैसे गाने बसे रहते।
आप को जन्मदिन की हार्दिक बधाईयां
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